श्री हनुमान बाहुक द्वितीय श्लोक हिंदी में

स्वर्ण-शैल-संकास कोटि- रवि-तरुन-तेज-घन।
उर विशाल, भुजदंड चंड नख बज्र बजरतन।।
पिंग नयन,भृकुटि कराल रसना दसानन।
कपिस केश,करकस लंगूर ,खल-दल बल भानन।।
कह तुलसीदास बस जासु उर
      मारुत सुत मूरत विकट।
संताप पाप तेहि पुरुष पाहि 
        सपनेहु नही आवत निकट ।।
श्री बाला जी की आरती
अर्थात
नरक क्या है          
श्री हनुमानजी की देह सोने के पहाड़ (सुमेर पर्वत)के समान है । करोड़ों तरुण (माध्यान्ह के) सूर्य की तरह तेजवान , विशाल वक्षस्थल , सशक्त भुजधारी, बज्र जैसे कठोर नख वाले और वज्र जैसे विशाल देह वाले है श्री हनुमानजी।
क्या होता है मृत्यु के बाद जाने केवल एक क्लिक में
नेत्रों में पीलाप,विकराल भौहे,जीभ,दांत,मुंह सभी कठोर,भूरे रंग की रोमावली, कठोर पूंछ जो दुष्टों के बल को भंजित करने वाली है । श्री तुलसीदास जी कहते है कि जिनके मन में हनुमानजी की यह विकराल मूर्ति बसती है , उनके पास सपने में दुख नही आता 
          जय जय श्री राम
हनुमान बहुके प्रथम श्लोक

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