श्री हनुमान बाहुक तृतीय श्लोक हिंदी में
श्री हनुमान बाहुक प्रथम श्लोक हिंदी में
।।झूलना।।
पंच मुख -छः मुख -भृगुमुख्य भट-असुर -सुर,
सर्व - सरि - समर समरत्थ सुरों।
बांकुरों बीर बिरुदैत बिरुदावली,
बेद बंदी बदत। पैजपुरो।।
जासु गुनगाथ रघुनाथ कह, जासु बल ,
बिपुल-जल-भरति जग-जलधि झूरो।
दुवन-दल-दमन को कौन तुलसीदास है,
पवन को पूत राजपूत रुरो।।
अर्थात
पंचमुखी शंकर,छः मुख वाले स्वामी कार्तिकेय और युद्धकला में प्रमुख परशुराम जैसे सुभटो व अन्य देवताओं अथवा राक्षसों के मुकाबले में भी युद्ध रूपी नदी को सहज पर होने वाले योग्य वीर है श्री हनुमानजी ।
वेद जिनकी वंदना करते हुए कहते है कि वे अपनी आन निभाने वाले यशस्वी वीर है । श्री रघुनाथ जी स्वयं उनकी गुणगाथा कहते है । जिनके अपार पराक्रम के कारण दुःख रूपी जल से भरा संसार सागर सूख जाता है । तुलसीदास जी कहते है के उनके स्वामी के अतिरिक्त राक्षसों का नाश करने। वाला अन्य कोई राजपूत नही है
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