श्री हनुमान बाहुक चतुर्थ श्लोक हिंदी में

  हनुमान बाहुक पूर्व सभी श्लोक पढ़े हिंदी ने
                ।।घनाक्षरी।।
भानुसों पढन हनुमान गए भानु मन ,
अनुमानि सिसुकेलि कियो फेरफार सो।
पछिले पगनि गम गगन मगन-मन,
क्रमको न भ्रम, कपि बालक-बिहार सो।।
कौतक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि,
लोचननि चकाचौंधी चित्तनी खभार सो।
बल कैधौं बीररस,धीरज कै, साहस कै,
तुलसी सरीर धरे सबनिको सार सो।।

अर्थात

श्री हनुमानजी सूर्य से शिक्षा ग्रहण करने गए । अउरी ने सोचा हनुमान जी लड़कपन कर रहे है ।(सूर्य वस्तुतः सदा गतिमान हैंअपना जवाब जरूर दे कि ऐसे नेता को भारत से निष्कासित करना चाहिए कि नही और शिक्षा के लिए तो शिष्य को गुरु के सम्मुख रहना पड़ता है )परंतु श्री हनुमानजी सूर्य की ओर ही अपना मुख कर सूर्य के ही मार्ग पर पीठ की ओर (उल्टे पैर)चलते रहे मानो यह बच्चों का खेल हो इस प्रकार शिक्षा का क्रम नही बदला । 
अब बनेगा गायो का आधार देखे यह वीडियोयह आश्चर्यजनक खेल देख कर लोकपाल ब्रह्म ,बिष्णु और शिव की आंखे चौंधिया गयी और उनके चित्त में खलभली मच गई थी। तुलसीदास जी कहते है कि यह सब सोचने लगे कही वीरता ,धैर्य ,साहस,आदि गुणों ने श्री हनुमानजी के रूप में शरीर धारण तो नही कर लिया 

             जय जय श्री राम

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