श्री हनुमान बाहुक छठवां श्लोक हिंदी में

गोपद पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक,
निपट निसंक परपुर गलबल भो।
द्रोन सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर,
कंदुक ज्यो कपिखेल बेल कैसो फल भो।।
संकट समाज असमंजस भो रामराज,
काज जुग-पुगनिको करतल पल भो।
साहसी समत्थ तुलसीको नाह जाकी बाँह,
लोकपाल पालन को फिर थिल थल भो।।

हनुमान बाहुक पूर्व श्लोक
अर्थात


सागर को, गऊ के कहर से बना, गड्ढा समझा और बिना किसी डर के लंका को जला दूसरे के नगर में खलभली मचा दी ।
द्रौणागिरी जैसा पहाड़ देखते -देखते उखाड़ लिया । ऐसा लगा मानो बेल का फल हो, जिसे वानर समूह गेंद संमझ कर खेल रहे हो । राम राज्य (रामादल)पर आए संकट को घड़ी में , जब सारा समाज असमंजस में डूबा था , हनुमान जी ने युगों तक पूरा न हो सकने वाला काम चुटकी बजाते ही पूरा किया
(लक्षमण शक्ति का प्रसंग )। तुलसीदास जी कहते है इस प्रकार समस्त लोकपालो के पुनः परिपालन के लिए हनुमानजी की भुजायें स्थिर स्थान बनाने में सफल हुई

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