श्री हनुमान बाहुक प्रथम श्लोक हिंदी में

               ।।छप्पय।।

सिंधु-तरन-सिय-सोच-हरन,रवि-बालवरन-तनु। 

भुज विशाल,मूरति कराल कालहुको काल जनु।।

 गहन-दहन-निरदहन-लंक निः संक, बंक-भुव।

   जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवंसुव।।कह तुलसीदास सेवत सुलभ,          सेव हिट संतत निकट।गुनगनत,नमत, सुमिरत,जपत,      समन सकल-संकट-बिकट।।

अर्थात
        समुन्द्र को लांघकर सीता जी के शोक का निवारण करने वाले प्रातःकाल सूर्य की सी आभा देने वाले विशाल भुजधारी,काल के लिए भी काल के समान , बिना संकोच 
पाप कर्म करने से नरक में दी जाती है ये यातनाये गरुण पुराण
के ,केवल अपनी भौंह को टेढ़ी कर, नही जलाई जा सकने वाली लंका को जलाने वाले ,राक्षसों  के मान अभिमान का नाश करने वाले है , पवन पुत्र श्री हनुमानजी।।
श्री तुलसीदास जी के अनुसार हनुमानजी की सेवा सहज है और वे सेवको के कल्याण के लिए सदा निकट ही रहते है ।।
हनुमानजी गुणगान करने वाले ,नमन करने वाले , स्मरण करने वाले , जप करने वाले सेवको के बड़े से बड़े कष्टो का निवारण करते है 
श्री हनुमान बाहुक द्वितीय श्लोक

क्या होता है मृत्यु के बाद जाने ही हिंदी में 

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